जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा |
हमनें थकते देखा, थक कर रुक जाते और मुरझाते देखा,
धरा के इस पञ्च तत्व में, विलय शून्य बन जाते देखा
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
थक गए चलते-चलते, मंजिल का विश्राम नहीं,
ऐसे मानों राह बड़ा, पथ का कोई ज्ञान नहीं |
खोज रहे उस पावक पथ को, निज पाओं से चलते-चलते,
जब थक कर चूर हुए अरमान, तब आसमान की ओर भी देखा,
उजियारे भी चले गए, अब अंधकार के बादल बैठे,
उन्नत मस्तक अरमानों का, अपमानों से सम्मानों तक,
कभी मिलते देखा, कभी लड़ते देखा, कभी चलते देखा, कभी रुकते दखा,
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
कभी पावों के निचे अंगारें, कभी प्रलय की घोर घटायें,
कभी अपनों के कल कहार में, घोर घृणा और दीर्घ हार में ,
नफरत के इस अंगार में हमनें सुलगते देखा, हमनें धधकते देखा,
नफरत के इस झूठी सान में, आंसुओ के इस झूठी राह में,
कभी मतलब के बिच धार में, डुबकी खूब लगते देखा ,
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
कदम-कदम पर काटें, कुछ काटों में सज्जन जीवन,
प्रखर प्यार से बंचिंत जीवन, कभी मिलते देखा, कभी मिलते देखा
आहुति में अर्पित करते, शत – शत तन- मन करते देखा,
कुछ जीवन को जीते देखा, कदम मिला कर चलते देखा,
सपने छोटे-बड़े थे फिर भी, अरमानो को ढलेट देखा ,
कदम मिला कर चलते देखा, कुछ जीवन को जीते देखा,
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
खुशियों के चंद बारिस पर हमने हंसते देखा, हमने रोते देखा,
किसी को आत्म सम्मान तो किसी को आत्म ग्लानी में जीते देखा,
जीवन के इस रंग मंच पर, खिलते फुल और मुरझाते देखा
जीवन के कुछ क्षणित जित और दीर्घ हार में रोते देखा,
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा, हमनें रुकते देखा ||
रिश्तों पर भी कीचड़ फेके, अपमानो की बरीष करते,
शुध्द-विशुध्द वायु की बाते, गुब्बारों में भरते देखा
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा, हमनें रुकते देखा ||
-> Mukesh Chakarwarti
बहुत बढ़िया कविता साझा की हैं ।