
सृष्टि के आरंभ में मनुष्य उत्पत्ति।
अष्टम
समुल्लास में महर्षि दयानन्द
जी लिखते है की सृष्टि
के आदि में युवावस्था
के रूप में
सृष्टि
के आरम्भ में मनुष्य युवावस्था
में उत्पत्ति हुए व यह
अमैथुनी उत्पत्ति थी । यह
सत्यार्थ प्रकाश में स्पष्ट लिखा
है । किन्तु इससे
अधिक विवरण वहाँ भी नहीं
है व अन्य शास्त्रों
में भी पढ़ने में
नहीं आया । अनेक
विद्वान प्रवचन - लेखादि द्वारा इस प्रक्रिया का
संभावित स्वरुप अपनी ऊहा
से प्रकट करते रहे है
। ऐसी संभावना जो
सृष्टि के अन्य नियमों
अधिकाधिक अनुकूल हो व काम
से काम प्रतिकूल हो
। ऐसी ऊहा - संभावना
में संशोधन की संभावना मानते
हुए कथन होता है
। कोई निश्चित अंतिम
तथ्य के रूप में
नहीं ।
एकाएक सैकड़ो
- सहस्त्रों मनुष्यों के आनें की संभावना आकाश से तो क्षीण प्रायः है । हाँ, धरती में
से आने की संभावना प्रबल है । जिस प्रकार मैथुनी
सृष्टि में शिशु माँ के गर्भ में सुरक्षित - पोषित होता