तुलसीदास की रामचरित मानस में ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी का क्या है सही अर्थ ?
प्रभु ( भगवान ) भल कीन्ह मोहि (मुझे) सिख (शिक्षा)दीन्हीं (दी)। मरजादा (मर्यादा) पुनि तुम्हरी कीन्हीं (आपकी ही बनाई हुई है) ॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) के अधिकारी॥
तुलसी दास जी ने इसे अवधी भाषा में लिखा था इस दोहा का हिन्दी बर्जन आ चुका है जो इस प्रकार है
प्रभु ( भगवान ) भल कीन्ह मोहि(मुझे) सिख (शिक्षा)दीन्हीं (दी)। मरजादा (मर्यादा) पुनि तुम्हरी कीन्हीं (आपकी ही बनाई हुई है) ॥
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। चेहरा ध्यान देने के अधिकारी॥
अर्थात
ढोल = प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे सिख (शिक्षा) दी , किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। जैसे ढोल एक निर्जीव है उसका ख्याल नहीं रखेंगे तो खराब हो सकता है ढोल का सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) चाहिए मतलब ख्याल रखना चाहिए वरना खराब हो सकते है ढोल के लिए सिख (शिक्षा) जरूरत हो