साहित्य

जीवन ऊर्जा तो एक हीं है:अजय अमिताभ सुमन
PC:Pixabay
जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या जीवन में अर्थ भरो या यूँ हीं इसको व्यर्थ करो।
या मन में रखो हींन भाव और ईक्क्षित औरों पे प्रभाव,
भागो बंगला गाड़ी पीछे ,कभी ओहदा कुर्सी के नीचे,
जीवन को खाली व्यर्थ करो, जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या पोषित हृदय में संताप, या जीवन ग्रसित वेग ताप,
कभी ईर्ष्या,पीड़ा हो जलन, कभी घृणा की धधके अगन,
अभिमान, क्रोध अनर्थ तजो, जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या लिखो गीत कोई कविता,निज हृदय प्रवाहित हो सरिता,
कोई चित्र रचो,संगीत रचो, कि कोई नृत्य कोई प्रीत रचो,
तुम हीं संबल समर्थ अहो,जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
जीवन मे होती रहे आय,हो जीवन का ना ये पर्याय,
कि तुममे बसती है सृष्टी, हो सकती ईश्वर की भक्ति,
तुम कोई तो

हकीकत-अजय अमिताभ सुमन
PC:Pixabay
रोज उठकर सबेरे नोट की तलाश में ,
चलना पड़ता है मीलों पेट की खुराक में.
सच का दामन पकड़ के घर से निकालता है जो,
झूठ की परिभाषाओं से गश खा जाता है वो.
बन गयी बाज़ार दुनिया,बिक रहा सामान है,
दिख रहा जो जितना ऊँचा उतना बेईमान है.
औरों की बातें है झूठी औरों की बातो में खोट,
मिलने पे सड़क पे ना छोड़े पाँच का भी एक नोट.
तो डोलते नियत जगत में डोलता ईमान है,
और भी डुलाने को मिल रहे सामान है.
औरतें बन ठन चली बाजार सजाए हुए ,
जिस्म पे पोशाक तंग है आग दहकाए हुए.
तो तन बदन में आग लेके चल रहा है आदमी,
ख्वाहिशों की राख़ में भी जल रहा है आदमी.
खुद की आदतों से अक्सर सच हीं में लाचार है,
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है.
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित

कवि की अभिलाषा:अजय अमिताभ सुमन
PC:Pixabay
ओ मेरी कविते तू कर परिवर्तित अपनी भाषा,
तू फिर से सजा दे ख्वाब नए प्रकटित कर जन मन व्यथा।
ये देख देश का नर्म पड़े ना गर्म रुधिर,
भेदन करने है लक्ष्य भ्रष्ट हो ना तुणीर।
तू भूल सभी वो बात की प्रेयशी की गालों पे,
रचा करती थी गीत देहयष्टि पे बालों पे।
ओ कविते नहीं है वक्त देख सावन भादों,
आते जाते है मेघ इन्हें आने जाने दो।
कविते प्रेममय वाणी का अब वक्त कहाँ है भारत में?
गीता भूले सारे यहाँ भूले कुरान सब भारत में।
परियों की कहे कहानी कहो समय है क्या?
बडे मुश्किल में हैं राम और रावण जीता।
यह राष्ट्र पीड़ित है अनगिनत भुचालों से,
रमण कर रहे भेड़िये दुखी श्रीगालों से।
बातों से कभी भी पेट देश का भरा नहीं,
वादों और वादों से सिर्फ हुआ है भला कभी?
राज मूषको का उल्लू अब शासक है,
शेर कर रहे न्याय पीड़ित मृग शावक है।
भारत माता पीड़ित अपनों के हाथों से,
चीर र

मिली जुली सरकार की तरह (अजय अमिताभ सुमन)
PC:Pixabay
फंसी जीवन की नैया मेरी,बीच मझधार की तरह।
तू दे दे सहारा मुझको,बन पतवार की तरह ।
तेरी पलकों की मैंने जो,छांव पायी है।
मेरी सुखी सी बगिया में,हरियाली छाई है।
तेरा ये हंसना है या कि,रुनझुन रुनझुन।
खनखनाना कोई,वोटों की झंकार की तरह।
तेरे आगोश में ही,रहने की चाहत है।
तेरे मेघ से बालों ने,किया मुझे आहत है।
मेजोरिटी कौम की हो तुम,तो इसमे मेरा क्या दोष।
ये इश्क नही मेरा,पॉलिटिकल हथियार की तरह।
हर पॉँच साल पे नही, हर रोज वापस आऊंगा।
तेरी नजरों के सामने हीं,ये जीवन बिताउंगा।
अगर कहता हूँ कुछ तो,निभाउंगा सच में हीं।
समझो न मेरा वादा,चुनावी प्रचार की तरह।
जबसे तेरे हुस्न की,एक झलक पाई है।
नही और हासिल करने की,ख्वाहिश बाकी है।
अब बस भी करो ये रखना दुरी मुझसे।
जैसे जनता से जनता की सरकार की तरह।
प्रिये कह के तो देख,कुछ भी कर जाउंगा।
ओमपुरी सड़क को,हेमा माफिक बनवाऊंगा।
अब छोड़ भी दो यूँ,च

सरकारी पालिसी:अजय अमिताभ सुमन
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रिक्शेवाले से लाला पूछा चलोगे क्या फरीदाबाद?
उसने बोला झटाक से उठकर बिल्कुल तैयार हूँ भाई साब.
मैं तैयार हूँ भाई साब कि सामान क्या है तेरे साथ?
तोंद उठाकर लाला बोला आया तो मैं खाली हाथ.
आया तो मैं खाली हाथ की साथ मेरे घरवाली है.
और देख ले पीछे भैया वो हथिनी मेरी साली है.
वो हथिनी मेरी साली है कि क्या लोगे किराया?
देख के तीनों लाला हाथी रिक्शा भी चकराया.
रिक्शावाला बोला पहले आजमा लूँ अपनी ताकत.
दुबला पतला चिरकूट मैं तुम तीनों के तीनों आफत.
तीनों के तीनों आफत पहले बैठो तो इस रिक्शे पर.
जोर लगा के देखूं मैं फिर चल पाता है रिक्शा घर?
चल पाता है रिक्शा घर कि जब उसने जोर लगाया.
टूनटूनी कमर वजनी रिक्शा चर चर चर चर चर्राया.
रिक्शा चर मर चर्राया कि रोड ओमपुरी गाल.
डगमग डगमग रिक्शा डोले हुआ बहुत ही बुरा हाल.
हुआ बहुत ही बुरा हाल

बिछिया:अजय अमिताभ सुमन
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दिसंबर का महीना था।कड़ाके की ठंड पड़ रही थी।मार्च में परीक्षा होने वाली थी। भुवन मन लगाकर पढ़ रहा था। माँ ने भुवन को 2000 रुपये, गुप्ता अंकल को देंने के लिये दिए और बाजार चली गई।
इसी बीच बिछिया आयी और झाड़ू पोछा लगाकर चली गई। जब गुप्ता अंकल पैसा लेने आये तो लाख कोशिश करने के बाद भी पैसे नही मिले।सबकी शक की नजर बिछिया पे गयी। काफी पूछताछ की गई उससे। काफी जलील किया गया।उसके कपड़े तक उतार लिए। कुछ नही पता चला।हाँ बीड़ी के 8-10 पैकेट जरूर मिले। शक पक्का हो गया।चोर बिछिया ही थी। पैसे न मिलने थे, न मिले।
मार्च आया। परीक्षा आयी। जुलाई में रिजल्ट भी आ गया। भुवन स्कूल में फर्स्ट आया था। अब पुराने किताबो को हटाने की बारी थी। सफाई के दौरान भुवन को वो 2000 रूपये किताबों के नीचे पड़े मिले। भुुुवन नेे वो रुपये माँ को दिए और बिछिया के बारे में पूछा। मालूम चला उसकी तबियत खरा

मर्सिडीज बेंज वाला गरीब आदमी:अजय अमिताभ सुमन
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राजेश दिल्ली में एक वकील के पास ड्राईवर की नौकरी करता था. रोज सुबह समय से साहब के पास पहुंचकर उनकी मर्सिडीज बेंज की सफाई करता और साहब जहाँ कहते ,उनको ले जाता. पिछले पाँच दिनों से बीमार था. ठीक होने के बात ड्यूटी ज्वाइन की. फिर साहब से पगार लेने का वक्त आया. साहब ने बताया कि ओवर टाइम मिलाकर उसके 9122 रूपये बनते है . राजेश ने पूछा , साहब मेरे इससे तो ज्यादा पैसे बनते हैं. साहब ने कहा तुम पिछले महीने पाँच दिन बीमार थे. तुम्हारे बदले किसी और को ले जाना पड़ा. उसके पैसे तो तुम्हारे हीं पगार से काटने चाहिए. राजेश के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेवारी थी. मरते क्या ना करता.उसने चुप चाप स्वीकार कर लिया. साहब ने उसे 9100 रूपये दिए. पूछा तुम्हारे पास 78 रूपये खुल्ले है क्या? राजेश ने कहा खुल्ले नहीं थे. मजबूरन उसे 9100 रूपये लेकर लौटने पड़े.
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उसका

अन्ना का चूस लिया गन्ना:व्ययंग:अजय अमिताभ सुमन
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पहली बात तो मैं ये बता दूँ , ना तो मैं केजरीवाल जी का विरोधी हूँ और ना अन्ना जी का समर्थक ।एक बात ये भी बता दूँ की इस लेख का जो शीर्षक है उसका लेखक भी मैं नहीं । इस लेख का लेखक दरअसल एक ऑटो वाला है जिसने हाल ही में ये बात कही थी, मजाकिया अंदाज में।
खैर उसने ये बात "अन्ना का चूस लिया गन्ना" इस परिप्रेक्ष्य में कहा था कि केजरीवालजी ने अपने राजनैतिक कैरियर के लिए अन्नाजी का उपयोग किया , उनका इस्तेमाल किया , फिर उपयोग करके उन्हें फेंक दिया । ये बात मेरे जेहन में भीतर तक घुस गयी । उस ऑटो वाले की बात मुझे बार बार चुभ रही थी।
एक एक करके मुझे वो सारी पुरानी बातें याद आने लगी । वो रामलीला मैदान याद आने लगा जहाँ मेरे जैसे हजारों लोग अन्ना जी के नाम पे पहुंचे थे।भींगते हुए पानी में अन्नाजी का घंटों तक अन्नाजी इन्तेजार किया था। यहाँ तक की मेर