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ध्यान

खुश कैसे रहें? How to live happily? | Sadhguru Hindi  | Hindi Patrika

खुश कैसे रहें? How to live happily? | Sadhguru Hindi | Hindi Patrika

जीवन वृत्त, ध्यान
खुशी, एक ऐसा पहलू जिसकी इच्छा पूरा मानवता को रहती है , जीवन को एक खुशहाल और सांती पूर्ण बनाना है तो खुशी होनी जरूरी है . खुशी के सारे पहलुओं जानने के लिए , इस विडिओ को पूरा देखने ,
कैसे रोकें मन की बकबक? How to stop the mind’s chatter? | Sadhguru | हिंदी में

कैसे रोकें मन की बकबक? How to stop the mind’s chatter? | Sadhguru | हिंदी में

ध्यान
सद्गुरु एक ऐसा नाम जो आध्यत्म, योग दुनियां का जाना माना चेहरा जिसे पूरी दुनिया फोलोव करती है । जो अपने आप में एक पोसिटिवे ऊर्जा के श्रोत है। आप इनके वीडियो जरूर देखें जिसमे इन्होने बतायें है की " मन के बकबक को कैसे रोकें ? " क्या करें की मन को स्थिर रखा जा सके । आज के इस भाग-दौड़ की दुनिया में ये सबसे बड़ा काम है "मन को स्थिर करना / रखना" । आप इनके वीडियो के माध्यम से सच में बहुत ही हद तक परिवर्तन ला सकते है । (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
मन की हलचल रोकने का एक सरल तरीका

मन की हलचल रोकने का एक सरल तरीका

ध्यान, मुख्य, लाइफस्टाइल (जीवन शैली), स्वास्थ्य
पतंजलि ने योग की बहुत ही सरल परिभाषा दी थी – योग चित्त वृत्ति निरोधः। इसका अर्थ है मन में आने वाले सभी बदलाव रुक जाने पर योग की स्थिति प्राप्त होती है। जानते हैं ऐसी स्थिति तक पहुँचने का सरल उपाय | अगर आप हर चीज को उसी तरह समझते और महसूस करते हैं, जैसी वो है, तो लोग आपको दिव्यदर्शी या मिस्टिक कहते हैं। अगर आप जीवन को वैसे नहीं देखते, जैसा वह है तो इसका मतलब है कि आप मिस्टिक नहीं मिस्टेक हैं (गलती कर रहे हैं)। अब हम सब मिलकर उस गलती को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। आपके साथ जो कुछ भी घटित होता है, वह उस तरह से इसलिए घटित होता है, क्योंकि वह आपके मन के पर्दे पर उसी तरह से प्रतिबिंबित होता है। हम आइने के उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं। आपके घर पर जो आइना है, वह अगर रोज अपना आकार बदल ले, तो आपको कभी समझ ही नहीं आएगा कि आप कैसा दिखते हैं। इसीलिए पतंजलि ने योग की बहुत ही आसान और टेक्
ईशा क्रिया के अनुभव को हमेशा कायम कैसे रखें?

ईशा क्रिया के अनुभव को हमेशा कायम कैसे रखें?

ध्यान, स्वास्थ्य
  प्रश्न: सद्‌गुरु, मैं रोज शांभवी का अभ्यास करता हूं और लगभग रोजाना ईशा क्रिया करता हूं। अब मैं यह अनुभव करने लगा हूं कि ‘मैं शरीर नहीं हूं और मैं मन भी नहीं हूं’। मैं लेकिन मैं हर समय अपने शरीर और मन से दूरी बनाकर कैसे रखूं?   सांस आसानी से अनुभव में नहीं आती सद्‌गुरु: जब आप ईशा क्रिया के दौरान कहते हैं, ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ तो यह कोई फिलॉस्फी या विचारधारा नहीं है। यह कोई स्लोगन भी नहीं है जिसे आप अपने अंदर जोर-जोर से कहते रहें और एक दिन रूपांतरित हो जाएं। यह एक सूक्ष्म चेतावनी है जो आप अपनी सांस में भरते हैं। अपने मन में इस बात को बिठाने के लिए ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ का इस्तेमाल मत कीजिए। आप बस अपनी सांस में एक खास तत्व जोड़ते हैं। वरना आप अपनी सांस पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। फिलहाल आप हवा की गति से होने वाले संवेदनओं को ही देख पाते