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रातों रात वायरल हुआ किसानों की संवेदना को उकेरता गीत


कल “पुरुआ “के मंच से किसानी के कष्ट को रेखांकित करते हुए एक भोजपुरी गीत युट्यूब पर रिलीज हुआ है।
गीत मधुर है। बैकग्राउन्ड में है। और वीडियो में एक थके हुए लेकिन जूझते हुए किसान का चित्रण है।

त परती बा धरती देव बरिसबs कि नाहीं…..

हम अपने देश में मरते किसान देख रहे हैं। गाँवों से शहर की ओर पलायन देख रहे हैं। और शहर में घोर अभाव और असुविधा में एक और दिन जी लेने तथा अपने आश्रितों को जिलाए रखने के लिए मरते रहते हैं।
हमारी सरकारें जिन पार्टियों से बनती रही हैं…वे पार्टियाँ कम संगठित गिरोह ज्यादा हैं। उनमें ऐसे संवेदनशील और विवेकशील लोग नहीं जो सामान्य मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में कुछ मौलिक सोच सकें।



एक बात और ध्यान देने की है…कि किसी मंच से पहला गाना समस्या बताते हुए क्यों। धमाकेदार आइटम सांग क्यों नहीं…जिसे रातों रात लाखों व्यू मिले…और युट्युब से कमाई भी होने लगे।

हमारी संवाद एजेन्सी ने पता किया है..कि पुरुआ मंच ऐसे युवाओं ने तैयार किया है..जो परदेसी होने के कष्ट को झेल रहे हैं। वे मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छी सैलरी पाते हैं…अंगरेजी और आधुनिक तकनीक से अवगत हैं लेकिन माटी का प्रेम परदेस में भी उनके साथ है। ऐसे लोगों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ और गाँव से भी बेरोजगार एवं प्रतिभाशाली तथा कुछ कर गुजरने का माद्दा रखने वालों को जोड़कर एक साझा संकल्प लिया है कि अपनी भाषा को और समाज को नयी दिशा देंगे।

यह गीत जीवन की मूल समस्या को रेखांकित करता है। कहीं अतिवृष्टि है तो कहीं अनावृष्टि। सिंचाई व्यवस्था को लेकर सरकारों के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है।

ऐसे में देवताओं का ही आसरा है…..और युग युग से चलने वाली पुकार में इस गीत के बोल शामिल हैं।
बिना बरखा पानी किसानी कइसे होई…
इस गीत को पुरुआ के युट्युब चैनल पर सुना जा सकता है।



भोजपुरी पर अश्लील भाषा का लगा हुआ कलंक धोने में यह टीम सफल हो।ऐसी शुभकामना है।

किसी गीत को रातों रात इतना सुना जाना अपने आप में यह बताता है…कि लोग अच्छे गीत सुनना चाहते.हैं।ऐसे गीत भी जिसमें उनके दुखों की झलक हो….उनकी समस्याओं का वर्णन हो।
किसी समस्या के समाधान का पहला चरण….समस्या की ठीक ठीक पहचान है। पुरुआ के युवा…..एक नयी बयार बहाने को बेताब हैं। आने वाले समय में बहुत कुछ अच्छा आने की आहट है।
मोबाइल पर लघु फिल्में देखने के दौर में सोद्देश्यपरक लघु फिल्में भी इस मंच से आएंगीं। ऐसे बहुत लोग हैं….जो चिचियाते खलनायकों…..सुपरमैन नायकों और नाभिदर्शना नायिकाओं के छिछले अभिनय के बार बार दुहराव से ऊब गये हैं।विकल्प देने की जरूरत है।

ऐसा लगता है कि पुरुआ का मंच वह आवश्यक प्राणवायु दे पाएगा..जो सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मूल बनेगा।

https://www.youtube.com/channel/UC7-IVZDtzxLcO-O8Hal7ZgQ/videos

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