माँ वो वक्त वो ना रहा...
ज़ब बचपन माँ तुम्हारे आंचल की छाँव में गुजरता था...
ना कोई चिंता होती तब ना कोई फ़िक्र का पहरा रहता था __
जब रोती कभी आँखें तो माँ चुप कराया करती थी....
अपने प्यार के उस आँचल में मुझे कही छुपाया करती थी....
जब रोज पापा के डर से सरारत कम हो जाया करती थी...
किसी का डांटना चिल्लाना भी तब उतना नहीं अखरता था...
आज की इस दुनिया मे सब उल्टा सा लगता है__
ना वो बचपन का प्यार अब कही भी दिखता है__
तब मतलब, स्वार्थ, पैसो की दुनिया भी नहीं होती थी__
जलन, ईर्ष्या, द्वेष की ज्वाला भी ना होती थी __
आज तो हर पग-पग पर पैरों मैं जंजीरें हैँ__
ठुकराते हैँ सब यहां सब खूब ही मुझे रुलाते हैं__
झूठें किस्सों के किरदार भी मुझको कभी बनाते हैं___
माँ तब मे टूट जाता हु सबसे रूठ जाता हुँ __
तुझे याद करके माँ मैं अक्सर रो भी जाता हुँ __
दुनिया में सायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसका कोई नाम नहीं हो ।
लोग कहते है की व्यक्ति के जीवन में नाम उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना की कर्म, क्यों की अच्छे कर्म से ही व्यक्ति खुद और अपने कुल का नाम रोशन करता है ।
व्यक्ति के जीवन में नामकरण संस्कार महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है, व्यक्ति के कर्मो की वास्तविक पहचान उसका नाम ही दिलाता है।
कुछ अक्षरों का समूह जिससे व्यक्ति को जीवनभर उसकी एक पहचान बन जाता है। इस लिए हर एक माता पिता को अपने शिशु के नामकरण के दौरान कुछ बाते खासतौर पर ध्यान में रखनी चाहिए।
1. बुजुर्गों व स्वर्गीय परिजनों के नाम
हमारे समाज में अक्सर लोग ऐसा नाम रखते है जो सुनने में अच्छा लगता है लेकिन कुछ ऐसे भी नाम मिले है जिसका अर्थ कुछ अजब - गजब सा होता है या अर्थविहीन होता है।
नाम रखते समय माता-पिता और परिवार को ध्यान रखना चाहिए की नाम
Warning: printf(): Too few arguments in /home/u888006535/domains/hindipatrika.in/public_html/wp-content/themes/viral/inc/template-tags.php on line 113
हिंदुओं के आस्था का प्रतिका भगवान बद्रीनाथ धाम (Lord Badrinath or Badrinarayan) भले ही कपाट बंद हो चुके हैं लेकिन इस भगवन बदरीनाथ धाम में जहाँ माइनस 20 डिग्री पर पहुंच ठिठुरने वाली कड़क ठंडी में भी अनेक साधु - संत आज भी भगवान् की भक्ति में लीन हैं । इन्हे देख लगता है की इनके सामने कड़क ठंडी ने भी घुटने तक दिया है लगता है की इनके शरीर वज्रदेह बन चूका है ।
पूरा उच्च हिमालयी सर्दियों Himalayan Winter में बदरीनाथ धाम सहित यह क्षेत्र 4 से 6 फीट बर्फ से ढक जाता है फिर भी साधक की साधना भंग करने की तगत इस कड़ाके की ठण्ड में भी नहीं है ।
साधु जो माया के बंधन को तोड़ भगवान् के द्वार तक पहुंचे हैं । ये अपने ही साधना में लीन रहते है न तो उन्हें ठंडे पानी Cold water से कोई फर्क पड़ रहा है और न ही बर्फबारी Snowfall से । इस जगह पर भगवान् बदरीनाथ धाम Bhagwan Badrinath Dham में कपाट बंद होने क
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा |
हमनें थकते देखा, थक कर रुक जाते और मुरझाते देखा,
धरा के इस पञ्च तत्व में, विलय शून्य बन जाते देखा
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
थक गए चलते-चलते, मंजिल का विश्राम नहीं,
ऐसे मानों राह बड़ा, पथ का कोई ज्ञान नहीं |
खोज रहे उस पावक पथ को, निज पाओं से चलते-चलते,
जब थक कर चूर हुए अरमान, तब आसमान की ओर भी देखा,
उजियारे भी चले गए, अब अंधकार के बादल बैठे,
उन्नत मस्तक अरमानों का, अपमानों से सम्मानों तक,
कभी मिलते देखा, कभी लड़ते देखा, कभी चलते देखा, कभी रुकते दखा,
जिंदगी के पड़ाव पर हमनें चलते देखा , हमनें रुकते देखा ||
कभी पावों के निचे अंगारें, कभी प्रलय की घोर घटायें,
कभी अपनों के कल कहार में, घोर घृणा और दीर्घ हार में ,
नफरत के इस अंगार में हमनें सुलगते देखा, हमनें धधकते देखा,
नफरत के इस
PC:Pixabay
जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या जीवन में अर्थ भरो या यूँ हीं इसको व्यर्थ करो।
या मन में रखो हींन भाव और ईक्क्षित औरों पे प्रभाव,
भागो बंगला गाड़ी पीछे ,कभी ओहदा कुर्सी के नीचे,
जीवन को खाली व्यर्थ करो, जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या पोषित हृदय में संताप, या जीवन ग्रसित वेग ताप,
कभी ईर्ष्या,पीड़ा हो जलन, कभी घृणा की धधके अगन,
अभिमान, क्रोध अनर्थ तजो, जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
या लिखो गीत कोई कविता,निज हृदय प्रवाहित हो सरिता,
कोई चित्र रचो,संगीत रचो, कि कोई नृत्य कोई प्रीत रचो,
तुम हीं संबल समर्थ अहो,जीवन ऊर्जा तो एक हीं है,
ये तुमपे कैसे खर्च करो।
जीवन मे होती रहे आय,हो जीवन का ना ये पर्याय,
कि तुममे बसती है सृष्टी, हो सकती ईश्वर की भक्ति,
तुम कोई तो
Warning: printf(): Too few arguments in /home/u888006535/domains/hindipatrika.in/public_html/wp-content/themes/viral/inc/template-tags.php on line 113
PC:Pixabay
रोज उठकर सबेरे नोट की तलाश में ,
चलना पड़ता है मीलों पेट की खुराक में.
सच का दामन पकड़ के घर से निकालता है जो,
झूठ की परिभाषाओं से गश खा जाता है वो.
बन गयी बाज़ार दुनिया,बिक रहा सामान है,
दिख रहा जो जितना ऊँचा उतना बेईमान है.
औरों की बातें है झूठी औरों की बातो में खोट,
मिलने पे सड़क पे ना छोड़े पाँच का भी एक नोट.
तो डोलते नियत जगत में डोलता ईमान है,
और भी डुलाने को मिल रहे सामान है.
औरतें बन ठन चली बाजार सजाए हुए ,
जिस्म पे पोशाक तंग है आग दहकाए हुए.
तो तन बदन में आग लेके चल रहा है आदमी,
ख्वाहिशों की राख़ में भी जल रहा है आदमी.
खुद की आदतों से अक्सर सच हीं में लाचार है,
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है.
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित