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मृत्यु एवं ईश्वर

जिज्ञासा :- हमारी मृत्यु का ईश्वर से क्या सम्बन्ध हैं? क्या मृत्यु ईश्वर के द्वारा होती है और कब होती है? कृपया बताने का कष्ट करें |

  • रामनारायण

समाधान:-

जीवों को अपने पूर्व कर्मानुसार ईश्वर के द्वारा जाती ( मनुष्य गाय -वृक्ष आदि), आयु व भोग -साधन प्राप्त होते है | हमारे वर्तमान जीवन के कर्मों से हमारी आयु व हमारे भोग-साधनों की न्यूनाधिकता हो सकती है, होती है | अन्य प्राणियों व प्रकृति -पर्यावरण से भी हमारी आयु व हमारे भोग-साधनों की न्यूनाधिकता हो सकती है, होती है| आयु के साथ ही मृत्यु जुड़ी है |आयु की समाप्ति होने को ही दूसरे शब्दों मे मृत्यु कहते है |

जन्म के समय पूर्व कर्मानुसार आयु का निर्धारण ईश्वर के द्वारा किया जाने पर भी चूंकि हमारे वर्तमान के पुरुषार्थ या आलस्य के कारण आयु में न्यूनधिकाता हो सकती है, साथ ही प्रकृति व अन्य प्राणियों के कारण भी आयु से न्यूनधिकाता हो सकती है अतः यह तो नहीं माना जा सकता की मृत्यु का क्षण, स्थान व प्रकार ईश्वर द्वारा निर्धारित व नियन्त्रित है | आत्महत्या, हत्या, दुर्घटना, रोग आदि की स्थितियों मे मृत्यु का कारण निश्चित ही ईश्वर को नहीं माना जा सकता | अतः इस दृष्टि से हमारी मृत्यु का ईश्वर के साथ सम्बन्ध नहीं है, मृत्यु ईश्वर के द्वारा नहीं होती |

ईश्वर को मृत्यु का परोक्ष कारण माना जा सकता है | पूर्व कर्मानुसार आयु का निर्धारण ईश्वर करता है, वर्तमान जीवन के कर्मानुसार भी आयु की हो न्यूनधिकाता होती है वह ईश्वरीय व्यवस्था-नियमों के आधार पर होती है | इस रूप मे ईश्वर परोक्ष मे हमारी मृत्यु से जुड़ा है |

ईश्वर हमारी मृत्यु से एक अन्य दृष्टि से भी जुड़ा है| यह समझना चाहिये की आत्महत्या, हत्या, दुर्घटना, रोगादि के द्वारा वस्तुतः मृत्यु नहीं होती | इनके द्वारा तो मात्र शरीर को ऐसी स्थिति मे पहुँचा दिया जाता है की वह आगे उपयोग के योग्य नहीं रह पाता, इनके द्वारा आत्मा को शरीर से निकाला नहीं जाता है | मृत्यु का अंतिम तात्पर्य यह है की आत्मा वर्तमान शरीर को छोड़ देवे | आत्मा स्वयं शरीर को छोड़ नहीं सकती,न ही वहाँ से निकलकर अन्य शरीर मे जा सकती है | आत्महत्या आती के द्वारा जब शरीर आगे उपयोग के योग्य नहीं रहता, जब ईश्वर उस आत्मा को उस शरीर से हटा लेता है और आगे उसके कर्मानुसार नयें शरीर को प्रदान करता है | इस दृष्टि से ईश्वर हमारी मृत्यु से जुड़ा है | समझने के प्रायः है भूल होती है की हम आत्महत्या, हत्या, दुर्घटना आदि को व उसके द्वारा शरीर के आयोग्य हो जाने को भी ईश्वर के द्वारा किया गया मान लेते है |

आत्महत्या, हत्या, दुर्घटना आदि के द्वारा जब असमय मृत्यु होती है जब आत्मा के भोगने से बचे कर्म व अन्य पुराने-नयें कर्मों के अनुसार नया जन्म मिलता है | आत्महत्या के प्रसंग के साथ मे दण्ड भी मिलता है | हत्या-दुर्घटना के प्रसंग मे मरने वाले की क्षतिपूर्ति करके ईश्वर न्याय करता है |

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