
प्रभु ( भगवान ) भल कीन्ह मोहि (मुझे) सिख (शिक्षा)दीन्हीं (दी)। मरजादा (मर्यादा) पुनि तुम्हरी कीन्हीं (आपकी ही बनाई हुई है) ॥
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) के अधिकारी॥
तुलसी दास जी ने इसे अवधी भाषा में लिखा था
इस दोहा का हिन्दी बर्जन आ चुका है जो इस प्रकार है
प्रभु ( भगवान ) भल कीन्ह मोहि(मुझे) सिख (शिक्षा)दीन्हीं (दी)। मरजादा (मर्यादा) पुनि तुम्हरी कीन्हीं (आपकी ही बनाई हुई है) ॥
ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। चेहरा ध्यान देने के अधिकारी॥
अर्थात
ढोल = प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे सिख (शिक्षा) दी , किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है।
जैसे ढोल एक निर्जीव है उसका ख्याल नहीं रखेंगे तो खराब हो सकता है ढोल का सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) चाहिए मतलब ख्याल रखना चाहिए वरना खराब हो सकते है ढोल के लिए सिख (शिक्षा) जरूरत होती है |
गंवार = एक गंवार कम पढ़ा लिखा इंसान अपने दुख और अपनी पीड़ा जल्दी किसी को नहीं बताता इस लिए उसके सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) चाहिए जैसे सुहानी साह और बागेश्वर धाम वाले बाबा धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री चेहरे को ताड़ कर बता देते है की क्या समस्या है ठीक उसी प्रकार एक गंवार के सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) चाहिए, तभी उसके दुख को समझ सकते है
सूद्र = हर इंसान जन्म से सूद्र होता है और कर्म से अपने वर्ण को प्राप्त होता है जैसे यदि कोई इंसान ना तो किसी सेना में है. ना ही कोई बिजनस करता है ,और ना ही धर्म – पूजा करते है मतलब सूद्र का यदि सही अर्थ आसान शब्दों में बताएं तो समाज में स्वछता लाए, समाज में सौहार्द लाए , समाज के छटे बड़े क्रयाओ में अपना योगदान दें वे सूद्र है | इससे जाती से कोई मतलब नहीं था लेकिन पखड़ी पंडितो ने एक सड़यंत्र के तरह इसे नस्ट करने की खूब कोईस की लेकिन इंटरनेट युग में अब पोल खुल गया है |
सूद्र जल्दी अपने दुखों को अपने परेसनियों को बाया नहीं कर पाते इस लिए सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) कर ही उनके दुखों और परेसनियों को समझ जा सकता है |
Note : – यदि आज के अनुसार देखा जाए तो जो बिजनस नहीं करता मतलब जो नौकरी (जॉब) करता है वे भी सूद्र केटेगरी में आते है चाहे किसी भी जाती धर्म का हो |
पसु = पसु अपने दुखों को नहीं बात पाता, अपने समस्यों को नहीं बता पाता इस लिए पसु के सकल (चेहरा ) ताड़ना(ध्यान देने ) से ही पता लग सकता है की उनकी क्या परेसनी है |
नारी = स्त्री जीवन के एक पहिये की तरह है जो मूल प्राकृत है, स्त्री अपने लाखों दुःखों को धारण करके अपने परिवार को चलती है, अपने बच्चों के लिए वे हर प्रकार के दुःखों को छिपा लेती है, वह अपने छोटे छोटे परेसनी को सबके सामने नहीं बता पाती यही इस लिए स्त्री सकल (चेहरा ) ताड़ना (ध्यान देने ) के ही उसके दुःखों को समझ जा सकता है |