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राजेश दिल्ली में एक वकील के पास ड्राईवर की नौकरी करता था. रोज सुबह समय से साहब के पास पहुंचकर उनकी मर्सिडीज बेंज की सफाई करता और साहब जहाँ कहते ,उनको ले जाता. पिछले पाँच दिनों से बीमार था. ठीक होने के बात ड्यूटी ज्वाइन की. फिर साहब से पगार लेने का वक्त आया. साहब ने बताया कि ओवर टाइम मिलाकर उसके 9122 रूपये बनते है . राजेश ने पूछा , साहब मेरे इससे तो ज्यादा पैसे बनते हैं. साहब ने कहा तुम पिछले महीने पाँच दिन बीमार थे. तुम्हारे बदले किसी और को ले जाना पड़ा. उसके पैसे तो तुम्हारे हीं पगार से काटने चाहिए. राजेश के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेवारी थी. मरते क्या ना करता.उसने चुप चाप स्वीकार कर लिया. साहब ने उसे 9100 रूपये दिए. पूछा तुम्हारे पास 78 रूपये खुल्ले है क्या? राजेश ने कहा खुल्ले नहीं थे. मजबूरन उसे 9100 रूपये लेकर लौटने पड़े.
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उसका घर मुख्य सड़क से दो किलोमीटर की दुरी पे था. रोज उसे बस से उतर कर उसे रिक्शा करना पड़ता. किराया 10 रूपया था रिक्शा वाले का. रोज की तरह उस दिन भी बस से उतरकर उसने एक रिक्शा लिया और घर की तरफ चल पड़ा. रिक्शे से उतरकर उसने रिक्शेवाले को 100 रूपये पकड़ा दिए.रिक्शेवाले के पास खुल्ले नहीं थे. उसने आस पास की दुकानों से खुल्ला कराने की कोशिश की , पर खुल्ला नहीं हुआ. आखिर में रिक्शा वाले ने वो पैसे राजेश को लौटा दिया. राजेश ने उसका मोबाइल नंबर माँगा तो रिक्शेवाले ने मना कर दिया. फिर गमछी से पसीने को पोंछते हुए चला गया. राजेश को अपने मालिक की बात बार बार याद आ रही थी. साहब बोल रहे थे मेरा मकान , मेरी मर्सिडीज बेंज सब तो यहीं है. तुम्हारे 22 रूपये लेकर कहाँ जाऊंगा. तुम्हारे 22 रूपये बचाने के लिए अपने घर और अपने मर्सिडीज बेंज को थोड़े हीं न बेच दूंगा. तुम्हारे बचे 22 रूपये अगले महीने की सेलरी में एडजस्ट कर दूंगा.
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राजेश के जेहन में ये बात घुमने लगी. एक ये रिक्शा वाला था जिसने खुल्ले नहीं मिलने पे अपना 10 रुपया छोड़ दिया और एक उसके साहब थे जिन्होंने खुल्ले नहीं मिलने पे उसके 22 रूपये रख लिए. ये सबक राजेश को समझ आ गयी। मर्सिडीज बेंज पाने के लिए साहब की तरह गरीबी बनाये रखना बहुत जरूरी है. ज्यादा बड़ा दिल रख कर क्या बन लोगे, महज एक रिक्शे वाला.