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दिसंबर का महीना था।कड़ाके की ठंड पड़ रही थी।मार्च में परीक्षा होने वाली थी। भुवन मन लगाकर पढ़ रहा था। माँ ने भुवन को 2000 रुपये, गुप्ता अंकल को देंने के लिये दिए और बाजार चली गई।
इसी बीच बिछिया आयी और झाड़ू पोछा लगाकर चली गई। जब गुप्ता अंकल पैसा लेने आये तो लाख कोशिश करने के बाद भी पैसे नही मिले।सबकी शक की नजर बिछिया पे गयी। काफी पूछताछ की गई उससे। काफी जलील किया गया।उसके कपड़े तक उतार लिए। कुछ नही पता चला।हाँ बीड़ी के 8-10 पैकेट जरूर मिले। शक पक्का हो गया।चोर बिछिया ही थी। पैसे न मिलने थे, न मिले।
मार्च आया। परीक्षा आयी। जुलाई में रिजल्ट भी आ गया। भुवन स्कूल में फर्स्ट आया था। अब पुराने किताबो को हटाने की बारी थी। सफाई के दौरान भुवन को वो 2000 रूपये किताबों के नीचे पड़े मिले। भुुुवन नेे वो रुपये माँ को दिए और बिछिया के बारे में पूछा। मालूम चला उसकी तबियत खराब रहने लगी थी। उसने काफी पहले से आना बंद कर दिया था।
भुवन बीछिया के घर गया, माफी मांगने। उसके पति ने कहा अच्छा ही हुआ, उस चोर को खुदा ने अपने पास बुला लिया।बिछिया गुजर चुकी थी।उसके पति ने दूसरी शादी कर ली थी। भुवन पश्चाताप की अग्नि में जलता हुआ लौट आया। 40 साल गुजर गए हैं। आज तक रुकी हुई है वो माफी।
अजय अमिताभ सुमन