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ईशा क्रिया के अनुभव को हमेशा कायम कैसे रखें?

 

प्रश्न: सद्‌गुरु, मैं रोज शांभवी का अभ्यास करता हूं और लगभग रोजाना ईशा क्रिया करता हूं। अब मैं यह अनुभव करने लगा हूं कि ‘मैं शरीर नहीं हूं और मैं मन भी नहीं हूं’। मैं लेकिन मैं हर समय अपने शरीर और मन से दूरी बनाकर कैसे रखूं?

 

सांस आसानी से अनुभव में नहीं आती

सद्‌गुरु: जब आप ईशा क्रिया के दौरान कहते हैं, ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ तो यह कोई फिलॉस्फी या विचारधारा नहीं है। यह कोई स्लोगन भी नहीं है जिसे आप अपने अंदर जोर-जोर से कहते रहें और एक दिन रूपांतरित हो जाएं।

यह एक सूक्ष्म चेतावनी है जो आप अपनी सांस में भरते हैं। अपने मन में इस बात को बिठाने के लिए ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ का इस्तेमाल मत कीजिए। आप बस अपनी सांस में एक खास तत्व जोड़ते हैं। वरना आप अपनी सांस पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। फिलहाल आप हवा की गति से होने वाले संवेदनओं को ही देख पाते हैं, सांस को नहीं।

जब आप सांस अंदर लेते हैं, तो जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ सांस अंदर ले रहे हों, सांस छोड़ने की प्रक्रिया भी आंशिक तौर पर घटित हो सकती है। इसी तरह, जब आप सांस छोड़ते हैं, तो जरूरी नहीं है कि आप सिर्फ सांस छोड़ रहे हों, आंशिक तौर पर आप सांस ले भी रहे हैं। लेकिन जब तक आप सांस की दिशा को नहीं जानते, तब तक आपको इसका पता नहीं चलेगा। इसके बावजूद कि कई रूपों से सांस आपके जीवन का आधार है, अधिकतर लोगों ने कभी अपनी सांस का अनुभव नहीं किया। जो लोग सिर्फ हवा के आने-जाने के संवेदनाओं के प्रति सजग हो गए, उन्होंने हर किस्म के रूपांतरण का दावा किया और यह सच्चाई भी है। आपकी संवेदना आपकी बाहरी परत है। इन संवेदनाओं को जानना सबसे बुनियादी चीज है। चाहे आप बैठें हों या खड़े, आप जिस चीज को भी छुएं, आपकी शरीर में संवेदना होगी। सांस अधिक गहन और गूढ़ आयाम है, जो आसानी से आपके अनुभव में नहीं आएगी।

सांस कूर्म नाड़ी के रूप में सक्रीय रहती है |

जब हम कूर्म नाड़ी के अर्थ में सांस की बात करते हैं, तो हम ऑक्सीजन-कार्बन डाइऑक्साइड की आवाजाही की बात नहीं करते। वह तो श्वास प्रक्रिया का एक परिणाम है।

अंदर आने और बाहर जाने वाली हवा की आवाजाही के साथ, लेन-देन का एक और स्तर होता है जो शारीरिक प्रक्रिया के घटित होने के लिए जरुरी है। चाहे कोई व्यक्ति मेडिकली मर गया हो, हवा की गति, हृदयगति और मस्तिष्क की क्रिया रुक गई हो, फिर भी वह कुछ समय तक एक तरह से सांस लेता रहता है – उसकी कूर्म नाड़ी सक्रिय रहती है। वह प्रक्रिया अब भी चलती रहती है, बस वह हवा खींचने और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने में सक्षम नहीं होता। यह एक पुराने साइफन की तरह है जो अब भी पंप कर रहा हो, मगर लीक होने के कारण तरल पदार्थ नहीं बहता। इसी तरह, कूर्म नाड़ी प्रक्रिया चलती रहती है मगर ऑक्सीजन-कार्बन डाइऑक्साइड का लेन-देन बंद हो जाता है। मान लीजिए स्टॉक एक्सचेंज बंद हो जाए, तो अधिकतर लोगों की समझ में तो पूरी अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी मगर फिर भी आप स्थानीय तौर पर खाने-पीने का सामान खरीद सकते हैं। हो सकता है कि आप नकद पैसे न देकर किसी और तरीके से भुगतान करें, लेकिन अर्थव्यवस्था फिर भी चलती रहेगी। बस उसका स्तर मापा नहीं जा सकेगा। इसी तरह हवा का आदान-प्रदान बंद हो जाने के बावजूद कूर्म नाड़ी सक्रिय रहती है।

सांस ही आपको आपके शरीर से जोड़ती है

हम सांस के प्रति चेतन होने की बात कर रहे हैं, जिसका अर्थ है कि आप शरीर के साथ अपने संबंध के प्रति जागरूक हो जाते हैं।

अगर आप अपनी सांस को निकाल लें तो जाहिर है कि आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जाएंगे। सांस के साथ चलकर आप उस आयाम तक पहुंच सकते हैं। अगर आप अपने शरीर को खुद से थोड़ी दूरी पर रखना सीख लें, तो आप जान जाएंगे कि आप शरीर नहीं हैं। अगर आपने ढीले कपड़े पहने हुए हैं, तो आप जानते हैं कि ये कपड़े आप नहीं हैं। अगर आपने बहुत चुस्त और शरीर से चिपके हुए कपड़े पहने हुए हैं तो कुछ समय बाद आप भूल जाएंगे कि वे आप हैं या नहीं। आप अपनी त्वचा को ‘मैं’ के रूप में अनुभव करते हैं। कुछ समय बाद ही आपकी त्वचा का कुछ हिस्सा गायब हो जाएगा मगर फिर भी आप ‘आप’ ही रहेंगे। चाहे आप शरीर की अधिक गहरी परतों में चले जाएं, फिर भी आप ‘आप’ ही रहेंगे।

यह विचार साँस में सुगंध घोलने की तरह है

‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ का इस्तेमाल किसी नारे की तरह मत कीजिए। यह इस तरह कारगर नहीं होगा।

यह आपको कूर्म नाड़ी या सांस के प्रति जागरूकता लाने के साधन के रूप में दिया गया है। नारे लगाना सड़क पर भीड़ को भरमाने का एक तरीका है। आप अपने अंदर ऐसा कुछ नहीं कर सकते। जब मैं उत्तर भारत में नई जगहों पर जाता हूं, तो लोग अक्सर चिल्लाना चाहते हैं, ‘सद्गुरु महाराज की जय।’ मैं तुरंत उन्हें रोक देता हूं और कहता हूं, ‘पहले आप नारा लगाएंगे, फिर झंडा आएगा, फिर एक निशान आएगा, फिर आप एक राष्ट्र बन जाएंगे। फिर आपका एक राष्ट्रीय पक्षी भी होगा।’

‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ को बहुत सूक्ष्म तरीके से घटित होना चाहिए ताकि सांस आपकी जागरूकता में आ सके। उस विचार के साथ आप अपनी सांस में एक सुगंध डाल रहे हैं ताकि आपका ध्यान उस पर जा सके। यह इस तरह है, मानो आप हवा की दिशा देखने के लिए अगरबत्ती जलाते हैं। अगर हवा हल्की चल रही हो, तो आप वैसे उसकी दिशा जान नहीं पाएंगे। बस इसी लिए।

source – http://isha.sadhguru.org/blog/hi/yog-dhyan/isha-kriya-anubhav-hamesha/

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