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चलना पड़ता है मीलों पेट की खुराक में.
झूठ की परिभाषाओं से गश खा जाता है वो.
दिख रहा जो जितना ऊँचा उतना बेईमान है.
मिलने पे सड़क पे ना छोड़े पाँच का भी एक नोट.
और भी डुलाने को मिल रहे सामान है.
जिस्म पे पोशाक तंग है आग दहकाए हुए.
ख्वाहिशों की राख़ में भी जल रहा है आदमी.
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है.
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