राजपूत सिर्फ एक जाति नहीं है,वह एक परंपरा है, जिसे भारतवर्ष में लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया. दस सूर्यवंशीय , दस चंद्रवंशीय क्षत्रिय, बारह ऋषिवंशी एवं चार अग्निवंशीय,कुल मिलाकर 32 वंशों के प्रमाण से राजपूतों का अस्तित्व सिद्ध होता है. बाद में यह बासठ वंश तक पहुँच गया. राजा राम सूर्यवंशी थे, यह क्षत्रिय वंश के लिए गौरव की बात है.
भारत में चाहे फिल्म हो या टीवी हर जगह राजपूतों को इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है मानो सांमतवाद और क्रूरता को जन्म देने में केवल इन्हीं का हाथ रहा हो .राजपूत परिवारों को शोषण का गढ़ दिखाया जाता है. लोगों में राजपूतों की छवि क्रूर शासक के रूप में बना दी गई है.
इसी से आगे बढ़ते हुए अब राजपूतों के निजी जीवन पर भी पटकथाएँ लिखी जा रही हैं. राम, कर्ण, अर्जुन , अभिमन्यु जैसे राजपूत योद्धाओं पर काफी कुछ लिखा- पढ़ा और पर्दे पर उतारा गया है, लेकिन ऐतिहासिक संदर्भों को तोड़-मरोड़ कर लोगों के मन में गलत बातें भरी जाएं तो उस पर आपत्ति करना कोई गुनाह नहीं है. राजपूत स्त्रियों का त्याग और बलिदान इतिहास के पन्नो में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. सीता माता की हम पूजा करते हैं. रानी दुर्गावती,रानी लक्ष्मीबाई रानी पद्मावती के नाम पर इतिहास भी गर्व करता है.
पिछले दिनों डायरेक्टर संजय लीला भंसाली पर राजपूत करणी सेना ने जयपुर में जब हमला बोला तब अचानक लोगों की ज़बान पर रानी पद्मावती का नाम आने लगा . बहुत से लोगों ने तो रानी पद्मावती को एक कल्पना बताकर इसे हवा में उड़ाना चाहा . लेकिन यदि इतिहास को उठाकर देखें तो रानी पद्मावती का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से है.गुहिल या गहलोत या सिसोदिया राजवंश का राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है. वह सूर्यवंशी राजपूत थे यह “पृथ्वी राज विजय ” काव्य से सिद्ध होता है.
मेवाड़ के दक्षिण-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले हैं. वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों इन उनका विस्तार हुआ . राजा जैत्रसिंह जिसने १२४८ में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन के विरुद्ध उसके भाई जलालुद्दीन को शरण दी. इन्हीं जैत्रसिंह के पौत्र रतनसिंह की पत्नी रानी पद्मावती थी. जिनका वंशबेल कालांतर में महाराणा सांगा,मीराबाई और महाराणा प्रताप जैसे लोगो ने जगह पाई.मीराबाई महाराणा सांगा की पौत्रवधु थीं।
यदि हम महाराणा सांगा, मीराबाई और महाराणा प्रताप के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो हमें राजा रतनसिंह की महारानी पद्मावती का सत्य भी स्वीकार करना होगा.
सूफी संत मालिक मुहम्मद जायसी ने संवत १५९७ में पद्मावत की रचना की और उसमें मुख्य पात्र के रूप में रानी पद्मावती को रखा .”पद्मावत “आज साहित्य में पढ़ाया जाता है और आजतक कभी उस पर विवाद नहीं उठा क्योंकि रानी पद्मावती का जो चरित्र वर्णन उसमें किया गया है वह भारतीय इतिहास के लिए एक गौरवशाली परंपरा के रूप में स्मरण किया जाता है . भले ही मलिक मुहम्मद जायसी धर्म से मुसलमान थे और उन्होंने एक राजपूत स्त्री के जीवन को लिखा लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने सतीत्व की रक्षा के लिए स्वयं को अग्नि की आहुति में झोंकने वाली यह देवी पूरे भारतवर्ष की स्त्रियों के सम्मान की प्रतीक हैं।
केवल रानी पद्मावती और राजा रतन सिंह के प्रेम और बलिदान को यदि रूपहले परदे पर दिखाया जाता तो यह देश के लिए गर्व की बात होती। भारत में ही अपने सम्मान की रक्षा के लिए ऐसा कठोर कदम यहाँ की नारियां उठती रही है. इसका दूसरा पहलू भी है ,जिस “जौहर” का प्रयोग राजपूत स्त्रियाँ अपना सम्मान बचाने के लिए करती थीं, उसका दुरूपयोग बाद में ‘सती प्रथा’ के रूप में होने लगा.
इतिहास में सौन्दर्य की लोलुपता से कितने युद्ध हुए ,प्राण गए,कथाएँ बनी, परंतु रानी पद्मावती का नाम उनकी सूझ -बूझ,पति-प्रेम, देश के सम्मान की रक्षा के लिए अपने सर्वस्व समर्पण की आस्था हेतु लिया जाता है.
रानी पद्मावती सिंघल द्वीप की राजकुमारी थी जिनका तोता हीरामन भटककर राजा रतनसिंह के पास चला जाता है. राजा रतनसिंह हीरामन द्वारा किये गए राजकुमारी की प्रशंसा से उनके प्रेम में पड़ जाते हैं और बहुत कठिनायों को पार करते हुए पद्मावती को ब्याहते है. राजा रतन सिंह का एक बागी सभासद तत्कलीन सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास बहला लेने के उद्देश्य से रानी पद्मावती की सौंदर्य प्रशंसाकर उसे प्राप्त करने के लिए उकसाता है .अनेक प्रयासों के बावजूद वह रानी को देख तक नहीं पाता .जब खिलजी ने राजा रतनसिंह का अपहरण कर उसे कैद कर रखा था उसी समय रानी पद्मावती को दुर्ग में अकेली समझ कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पद्मावती के पास एक दूत भेजकर प्रेम का प्रस्ताव भेजा था . इधर रानी ने अपने सामंतो गोरा और बदल की मदद से बंदी रतनसिंह राजपूत को मुक्त करवा लिया, जिसमें गोरा ने वीरगति पायी. जब रतनसिंह को राजा देवपाल की मंशा पता चली तोह उन्होंने कुंभलनेर जाकर देवपाल को युद्ध के लिए ललकारा, जिसमें देवपाल की पराजय हुई. लेकिन इस युद्ध में उसे भी चित्तौड़ पहुंचते ही घायल से मृत्यु अवस्था में पहुंच दिया. रतन सिंह की दोनों पत्नियों नामवती और पद्मावती ने खिलजी के आक्रमण की आशंका और फिर अपने सम्मान की रक्षा के लिए सोलह हज़ार राजपूत स्त्रियों के साथ “जौहर” की चिता में अपने आहुति दे दी.
खिलजी जिसे आज पद्मावती का प्रेमी बताने का प्रयास किया जा रहा है, वास्तव में वह एक कायर सुल्तान था जिसे भारतीय हिन्दू राजपूत स्त्रियों के मनोबल का आभास ही नहीं था.सौन्दर्य पाने की जिस लालसा को आज प्रेम बताया जा रहा है,दरअसल वह वासना थी.राजपुतानियों का प्रेम केवल उनके पतियों के लिए होता है यह अल्लाउद्दीन खिलजी ने जौहर की जलती चिता और उसकी लपटों से निकलती चीखो को देखकर ही ही जान लिया था फिर आज के कथित समाज को आईना दिखने वाले निर्देशक इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे?
सोशल मीडिया पर क्षत्रियों को नीचा दिखाया जा रहा है और कुछ लोग इसका समर्थन कर रहें है। आखिर ये राजपूत ही क्यों शोषक हैं? टीवी सीरियलों में ठाकुर परिवारों को हद दर्जे का आतातायी बताया जाता है।उनको क्रूर शोषक दिखाया जाता है। क्या किसी भी विशेष जाति को अबतक एक खास विरोधी रूप में दिखाया गया है?
हमारे देश में यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ किसी के निजी जीवन को उछालना है, तो राजपूत करणी सेना ने जो निजी व्यवहार ‘पद्मावती ‘ का गलत रूप प्रस्तुत करने वालों के साथ किया,वह ही उचित होना चाहिए.भारत सरकार को किसी भी जाति,संप्रदाय की भावनाओँ से खिलवाड़ करने की इस आज़ादी को सीमा में बाँधना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब ऐसी कई सेनाएँ पनपेंगी और ऐसे कई भंसाली पद्म पुरस्कारों से वंचित रह जाएँगे.