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एक रोटी

Ek Roti

भूख से तड़पते बच्चे को डस्टबिन से एक रोटी निकालकर खाते देखकर मुझे उस समय समझ आई एक रोटी की कीमत |

दिल्ली में जॉब करते हुए भी मै एक दिन  कुछ वेब एप्लीकेशन कार्स के लिए  मै एक  दोस्त के माध्यम से मै लक्ष्मी नगर नई दिल्ली  में एक कॉचिंग सेण्टर  में डेमो क्लास लेने गया था | मुझे उस दिन डेमो क्लास कर के अच्छा लगा , टीचर से बात भी किये, वंहा का माहौल और टीचिंग दोनों अच्छा लगा | बहुत दिनों के बाद कॉचिंग सेण्टर की तलाश ख़त्म हुयी थी|  अच्छा कॉचिंग सेण्टर  तलाश ख़त्म होने के कारण खुशी के मारे रूम पर वापस लौट रहा था | रास्ते का पता नहीं चला मै आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पहुच गया, मेट्रो ट्रेन में काफी भीड़ था, शाम के 7 बज रहे थे |

मुझे आनंद विहार में एक दोस्त के पास भी जाना था, जिसके चलते मै वही मेट्रो से उतर गया | लेकिन भीड़ काफी थी जिसके चलते मै आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर थोडा रुक कर चलना पसंद किया | और वही चेयर पर बैठ गया |

इस दिल्ली के भीड़ भरी नज़ारे को देखने लगा | लड़के-लड़कियों के समूह, आपस में बाते करते, लोगो के कोलाहल भरी आवाज, मै वहाँ शांत बैठ कर के वहाँ के इन सब नजारों का आनंद लेने लगा | कोई आपस में बात करते हुए हँसते हुए, मुस्कुरते हुए, कोई चुप-चाप,  इशारों- इशारों में बात करता, कोई चुप-चाप अपने ग्रुप में तो कोई अकेला अपने ही धुन में चलता हुवा |

ये सब नज़ारे देख मुझे अपने कॉलेज और स्कूल की बाते याद आने लगी | जब कॉलेज और स्कूल में फ्रेंड्स का ग्रुप होता था | वहां भी लड़के-लड़कियों हँसते हुए, मुस्कुरते हुए, कोई चुप-चाप, इशारों- इशारों में बात करता हुवा अपने मस्ती के परिंदे हुआ करते थे।

मैं सुबह  का ही भोजन कर के निकला था | डेमो क्लास के चलते मै लंच भी नहीं कर पाया | अपने साथ में लंच लिया था, क्यों की बहार का खाना ज्यादा मै पसंद नहीं करता, और हर जगह अच्छे होटल और अच्छे भोजन मिले सम्भव भी नहीं होता |

जब कुछ समय बाद भीड़ कम हुई तो, मैं मेट्रो स्टेशन से निचे उतरा और स्टेशन के बगल में बैठ कर लंच बॉक्स निकाल कर खाने लगा | मन ही मन मैं सोच रहा था की दोस्त के रूम पर आज जाऊ की नहीं, क्यों की रात होने पर वहाँ से अपने रूम पर के लिए ऑटो मिलना कहीं मुस्किल ना हो जाये | इस जल्दबजी में अब खाने का मन भी नहीं कर रहा था जिसके चलते मैं एक रोटी नहीं खा पाया और उसे पेपर में लपेट कर स्टेशन के बाहर डस्टबिन में डाल दिया |

अब  मैं वहीँ खड़ा हो कर ऑटो का इंतिजार करने लगा | तभी मैंने देखा कि एक 6 – 7 साल का लड़का खुला बदन,  फटी हुई हाफ पैंट पहने उस डस्टबिन के पास आया और डस्टबिन में काफी देर से देखता रहा वह बच्चा भूखा और कुपोषण का शिकार लग रहा था | उसने डस्टबिन में से पेपर में लपेटा हुवा रोटी निकला और बगल में बैठ कर खाने लागा |

उसने कुछ ही सेकंड में पूरा रोटी खा कर मन ही मन बहुत खुश दिख रहा था | कुछ समय बाद वह कुछ दूर जा कर एक पड़े के पास दोनों हाथों का तकिया बनाकर लेट गया ।

उसके लेटने का अंदाज ऐसा था कि जैसे उसने सारी जंहा की खुशीय पा ली हो।

इस दौरान कई ऑटो आये और चले गए लेकिन मै उस लडके को देखता रहा | मेरी आंखें भर आईं | मै अपने आप को ही अन्दर से कोस रहा था | मुझे बहुत ग्लानि हुई कि मैं घर में बचे हुए खाने को किस बेरुखी से डस्टबिन के हवाले कर देता हूं |

मैंने कभी कल्पना नहीं किया की बचा हुआ खाना किसी को इतनी बड़ी खुशियों का सौगात दे सकता है | ये फेकी हुई रोटी कुछ लोंगों के जीवन में 5 स्टार होटल के भोजन और दुनिया के सबसे मीठे पकवान से भी ज्यादा मिठास से कम नहीं |

उस दिन मैंने अपने जीवन  के अब तक के एक कड़वे सच का सामना कर रहा था | जिसे मै सायद पूरे जिन्दगी ना भुला सकूँ |

मैं उस दिन मन ही मन एक संकल्प लिया की कभी भी खाने की चीजें बर्बाद नहीं करूँगा और अपने सामने दूसरो को भी बर्बाद कर रहे खानों से अवगत करूंगा |

अपने जिन्दगी में यदि किसी कारण अगर खाना बचेगा तो उसे फेंकने की जगह किसी भूखे को खिला दूंगा, अगर सम्भव ना हुवा तो किसी जानवर को खिला दूंगा लेकिन किसी भी हालत में, मै उस बचे हुए भोजन को डस्टबिन में नहीं फेकुंगा ।

मेरा संकल्प आज भी बर्करार है, तब से मै खाने के किसी भी चीज का अपमान नहीं करता हु | और अपने आस – पास के लोगो को भी जागरूप करता रहता हु |

आज मेरे पॉकेट से 10 रूपया गिर जाए उतना दुःख नहीं होता जितना की अपमान करके फेका हुवा भोजन देख कर होता है |

मुकेश चकरवर्ती

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