सरकारी दफ्तर हो या दफ्तर का कार्यालय,
होता है ऐसा मनमाना जैसा घर का हो जाना ,
लोग आते है बिनती करते है, हाथ- पैर जोड़कर कहते हैं ,
जी घुश लीजिये काम कीजिये, अपना ये इनाम लीजिये ,
ओ कहते है वेतन चाँद का पुर्नावासी है , इससे काम नहीं चलता हैं ,
और दिजिए काम लीजिये, नहीं तो हम घर चलते है,
ऐसा लगता है हम नौकर, ओ हम सब का हैं मालिक,
जो कहते हैं वही करते हैं, मन मान है उन सबका ,
मनमाना चलता है उनका, नहीं उन्हें कोई कुछ कहता,
उनके उपर का अधिकारी, उनसे बड़ा घुस खोर हैं,
वे भी कुछ ऐसा करते हैं, घुस खोरी पेशा उनका,
कोई किसीको क्या समझाए, सब इस दलदल में लदफद हैं,
ऐसे मिले जुलें है जैसे अब खींचड़ी पकनें को है ||
– Mukesh Chakarwarti
NOte :- ऐसा नहीं की सभी दफ्तर/कार्यालय में होता है, लेकिन होता है ,