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साहित्य

प्रतिभाशाली गधे-अजय अमिताभ सुमन

प्रतिभाशाली गधे-अजय अमिताभ सुमन


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आज दिल्ली में गर्मी आपने उफान पे थी। अपनी गाड़ी की सर्विस कराने के लिए मै ओखला सर्विस सेंटर  गया था। गाड़ी छोड़ने के बाद वहां से लौटने के लिए ऑटो रिक्शा ढूंढने लगा। थोड़ी ही देर में एक ऑटो रिक्शा वाला मिल गया। मैंने उसे बदरपुर चलने को कहा। उसने कहा ठीक है साब कितना दे दोगे ? मैंने कहा: भाई मीटर पे ले चलो ,अब तो किराया भी बढ़ गया है ,अब क्या तकलीफ है? उसने कहा :साहब महंगाई बढ़ गयी है इससे काम नहीं चलता। मैं सोच रहा था अगर बेईमानी चरित्र में हो तो लाख बहाने बना लेती है। इसी बेईमानी के मुद्दे पे सरकार बदल गयी। मनमोहन सिंह चले गए ,मोदी जी आ गए पर आम आदमी में व्याप्त बेईमानी अभी भी जस के तस है। मैंने रिक्शे वाले से कहा भाई एक कहावत है, "ते ते पांव पसरिए जे ते लंबी ठौर" अपनी हैसियत के हिसाब से रहो ,महंगाई कभी कष्ठ नहीं देगी। आजकल कार में घूमता हूँ ,कभी बस में घू
कृष्ण, योगी भी भोगी भी:अजय अमिताभ सुमन

कृष्ण, योगी भी भोगी भी:अजय अमिताभ सुमन


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कृष्ण को समझना बहुत ही दुरूह और दुशाध्य कार्य  है. एक तरफ राधा को असीमित प्रेम करते है , तो दूसरी तरफ जब राधा का त्याग करते है तो पुरे जीवन फिर राधा को जीवन में मुड़ कर नहीं देखते हैं. एक तरफ उन्हें योगिराज कहते है तो दूसरी तरफ सोलह हजार रानियों के साथ शादी रचाते है . बचपन में नग्न कन्याओं के नहाते हुए वस्त्र हरते है तो दूसरी तरफ द्रोपदी का चीर हरण से बचाते है. बचपन में इंद्र से लड़ाई करते वक्त गोवर्धन पर्वत को कानी उंगली पर उठा लेते है , तो दूसरी ओर जरासंध से युद्ध में बचकर भाग निकलते है और रणछोड़ कहलाते हैं . जहाँ महाभारत शुरु होने से पहले महाबीर बर्बरीक के प्राण हर लेते है , तो दूसरी और अभिमन्यु के रक्षागत कोई उपाय नहीं करते है. महाभारत में शस्त्र नहीं उठाने का प्रण करते है तो दूसरी ओर भीष्म के वाणों से व्यथित होकर शस्त्र भी उठा लेते है . कृष्ण गीता का ज्ञान भी देते है और कर्ण को निहत
न्यायधीश जब न्याय मांगने निकले जोड़े हाथ:अजय अमिताभ सुमन:

न्यायधीश जब न्याय मांगने निकले जोड़े हाथ:अजय अमिताभ सुमन:


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स्वतंत्रता के बाद का इतिहास गवाह है, भारतीय न्याय पालिका ने भारतीय जनतंत्र को मजबूत करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। जब जब ऐसा लगा की भारतीय जनतंत्र खतरे में है, तब तब भारतीय न्याय पालिका ने ऐसे ऐसे जजमेंट पास किये जिससे भारतीय जन तंत्र की शाख बची रही। अभी हाल फिलहाल में माननीय सुप्रीम कॉर्ट के माननीय न्याय धीशों ने जिस तरह से प्रेस कॉन्फ्रेंस किया , उससे आम आदमी की आस्था भारतीय न्याय पालिका में डगमगाई है।आजकल की ये घटनाएँ ये साबित करती है कि माननीय सुप्रीम में सबकुछ ठीक नही चल रहा है । आम आदमी इन घटनाओं से क्षुब्ध है। मैंने राह चलते अनेक लोगो की बात चीत में हताशा महसूस की है। लाचारी महसूस की है। इस कविता के माध्यम से मैने इसी हताशा को परिलक्षित करने की कोशिश की है ।   उजाले की चाह मेंं आखिर ,खोजे दिन अब रात, मुश्किल में हालात देेेश की, बड़ी अजब है बात। इस युद्ध
एक रोटी

एक रोटी

मुख्य, साहित्य, हिन्दी साहित्य
भूख से तड़पते बच्चे को डस्टबिन से एक रोटी निकालकर खाते देखकर मुझे उस समय समझ आई एक रोटी की कीमत | दिल्ली में जॉब करते हुए भी मै एक दिन  कुछ वेब एप्लीकेशन कार्स के लिए  मै एक  दोस्त के माध्यम से मै लक्ष्मी नगर नई दिल्ली  में एक कॉचिंग सेण्टर  में डेमो क्लास लेने गया था | मुझे उस दिन डेमो क्लास कर के अच्छा लगा , टीचर से बात भी किये, वंहा का माहौल और टीचिंग दोनों अच्छा लगा | बहुत दिनों के बाद कॉचिंग सेण्टर की तलाश ख़त्म हुयी थी|  अच्छा कॉचिंग सेण्टर  तलाश ख़त्म होने के कारण खुशी के मारे रूम पर वापस लौट रहा था | रास्ते का पता नहीं चला मै आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पहुच गया, मेट्रो ट्रेन में काफी भीड़ था, शाम के 7 बज रहे थे | मुझे आनंद विहार में एक दोस्त के पास भी जाना था, जिसके चलते मै वही मेट्रो से उतर गया | लेकिन भीड़ काफी थी जिसके चलते मै आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर थोडा रुक कर चलना पसंद
श्रीभगवानुवाच-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

श्रीभगवानुवाच-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)


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गीता-विभूति योग  श्रीभगवानुवाच "प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्। मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।"   मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ।   पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम्। झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्थि जाह्नवी।। सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्।। और मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं तथा मछलियों में मगरमच्छ हूं और नदियों में श्री भागीरथी गंगा जाह्नवी हूं। पशुओं मैं कृष्ण का मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल को चुनना कई सारे सवाल पैदा करता है . कृष्ण मृगराज सिंह को हीं  चुनते है, अपनी विभूति को दर्शाने के लिए ,  पशुओं में हाथी हैं , डायनासोर हैं, बाघ है , चीता  है , ऊंट है ,
आत्म कथ्य-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

आत्म कथ्य-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)


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  ना पूछो मैं क्या कहता हूँ , क्या करता हूँ क्या सुनता हूँ .  दुनिया को देखा जैसे , चलते वैसे ही मैं चलता हूँ . चुप नहीं रहने का करता दावा, और नहीं कुछ कह पाता हूँ. बहुत बड़ी उलझन है यारो, सचमुच मैं अब शर्मिन्दा हूँ सच नहीं कहना मज़बूरी, झूठ नहीं मैं सुन पाता हूँ . मन ही मन में जंग छिडी है , बिना आग के मैं जलता हूँ . सूरज का उगना है मुश्किल , फिर भी खुशफहमियों से सजता हूँ . कभी तो होगी सुबह सुहानी , शाम हूँ यारो मैं ढलता हूँ .                                                                                               अजय अमिताभ सुमन                                                                                           सर्वाधिकार सुरक्षित
सरकारी दफ्तर या  कार्यालय

सरकारी दफ्तर या कार्यालय

मुख्य, साहित्य
सरकारी दफ्तर हो या दफ्तर का कार्यालय, होता है ऐसा मनमाना जैसा घर का हो जाना , लोग आते है बिनती करते है, हाथ- पैर जोड़कर कहते हैं , जी घुश लीजिये काम कीजिये, अपना ये इनाम लीजिये , ओ कहते है वेतन चाँद का पुर्नावासी है , इससे काम नहीं चलता हैं , और दिजिए काम लीजिये, नहीं तो हम घर चलते है, ऐसा लगता है हम नौकर, ओ हम सब का हैं मालिक, जो कहते हैं वही करते हैं, मन मान है उन सबका , मनमाना चलता है उनका, नहीं उन्हें कोई कुछ कहता, उनके उपर का अधिकारी, उनसे बड़ा घुस खोर हैं, वे भी कुछ ऐसा करते हैं, घुस खोरी पेशा उनका, कोई किसीको क्या समझाए, सब इस दलदल में लदफद हैं, ऐसे मिले जुलें है जैसे अब खींचड़ी पकनें को है || - Mukesh Chakarwarti NOte :- ऐसा नहीं की सभी दफ्तर/कार्यालय में होता है, लेकिन होता है ,
जय हो जय हो , नीतीश तुम्हारी जय हो-अजय अमिताभ सुमन

जय हो जय हो , नीतीश तुम्हारी जय हो-अजय अमिताभ सुमन

अन्य, मुख्य, राज्य (State), साहित्य, हिन्दी साहित्य
  जय हो , जय हो, नितीश तुम्हारी जय हो।                                                                                     जय हो एक नवल बिहार की , सुनियोजित विचार की, और सशक्त सरकार की, कि तेरा भाग्य उदय हो, तेरी जय हो।                                                                                       जाति पाँति पोषण के साधन कहाँ होते ? धर्मं आदि से पेट नहीं भरा करते।                                                                                     जाति पाँति की बात करेंगे जो, मुँह की खायेंगें। काम करेंगे वही यहाँ, टिक पाएंगे।                                                                                              स्वक्षता और विकास, संकल्प सही तुम्हारा है। शिक्षा और सुशासन चहुँ ओर , तुम्हारा नारा है।        
चाह मेरी प्रभु पाने की तुझको-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

चाह मेरी प्रभु पाने की तुझको-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)


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मेरी चाहत प्रभु तुझे पाने की, पर तेरी मजबूूूरी आजमाने की। जमाने की नीयत उलझाने को मुझको। वासनाओं की हसरत सताने को मुुझको। ख्वाहिशों का अक्सर चलता मुझपे है जोर, पर प्रभु तझसे ही बंधी जीवन  की डोर। रास्ते हैं अनगिनत,अनगिनत हैं ठौर, मुश्किल हैं ठोकरें मुश्किल है दौड़। भटकन है तड़पन है कितने जमाने की। नियत नही फिर भी तुझको भुलाने की, मंजिल तो तू ही  प्रभु  तुझमें ही मिट जाना, तेरा हो जाना मेरा और मेरा तुझमे खो जाना।                                                                                                     अजय अमिताभ सुमन   सर्वाधिकार सुरक्षित 
एक बालक की पुकार

एक बालक की पुकार

साहित्य, हिन्दी साहित्य
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); नोट - घर पर कोई नहीं है रात का समय है एक बालक अकेले घर पर है और डरा हुवा है , अन्धकार के चलते आकाश के चाँद - सितारों को मना रहा है , उनको फुसिला रहा है अपने मीठी बातों से । आजा तारे -चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । मेरे घर को तू चमकादे , अंधियारा तू दूर भगा दे । अच्छा नहीं लगता अंधियारा , तू हीं लगता है मुझे प्यारा । आजा तारे - चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । तेरे बिना ना पढ़ सकता मैं , तेरे बिना ना रह सकता मैं । कैसे मैं तुझे मनाऊँ , कैसे कर मैं तुझे समझाऊँ । मैं तुमसे बिनती करता हूँ, तुमसे मैं रो कर कहता हूँ । हे आकाश के चाँद -सितारे , सुन ले ईश बालक की बाते , कर दे तू अँधियारा दूर , कर दे तू अँधियारा दूर । Mukesh Chakarwarti