Wednesday, August 27Welcome to hindipatrika.in

हिन्दी साहित्य

श्रीभगवानुवाच-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

श्रीभगवानुवाच-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

गीता-विभूति योग  श्रीभगवानुवाच "प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्। मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।"   मैं दैत्यों में प्रह्लाद और गणना करने वालों का समय हूँ तथा पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ।   पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम्। झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्थि जाह्नवी।। सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्।। और मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं तथा मछलियों में मगरमच्छ हूं और नदियों में श्री भागीरथी गंगा जाह्नवी हूं। पशुओं मैं कृष्ण का मृगराज सिंह और मछलियों में घड़ियाल को चुनना कई सारे सवाल पैदा करता है . कृष्ण मृगराज सिंह को हीं  चुनते है, अपनी विभूति को दर्शाने के लिए ,  पशुओं में हाथी हैं , डायनासोर हैं, बाघ है , चीता  है , ऊंट है ,
आत्म कथ्य-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

आत्म कथ्य-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

  ना पूछो मैं क्या कहता हूँ , क्या करता हूँ क्या सुनता हूँ .  दुनिया को देखा जैसे , चलते वैसे ही मैं चलता हूँ . चुप नहीं रहने का करता दावा, और नहीं कुछ कह पाता हूँ. बहुत बड़ी उलझन है यारो, सचमुच मैं अब शर्मिन्दा हूँ सच नहीं कहना मज़बूरी, झूठ नहीं मैं सुन पाता हूँ . मन ही मन में जंग छिडी है , बिना आग के मैं जलता हूँ . सूरज का उगना है मुश्किल , फिर भी खुशफहमियों से सजता हूँ . कभी तो होगी सुबह सुहानी , शाम हूँ यारो मैं ढलता हूँ .                                                                                               अजय अमिताभ सुमन                                                                                           सर्वाधिकार सुरक्षित
जय हो जय हो , नीतीश तुम्हारी जय हो-अजय अमिताभ सुमन

जय हो जय हो , नीतीश तुम्हारी जय हो-अजय अमिताभ सुमन

अन्य, मुख्य, राज्य (State), साहित्य, हिन्दी साहित्य
  जय हो , जय हो, नितीश तुम्हारी जय हो।                                                                                     जय हो एक नवल बिहार की , सुनियोजित विचार की, और सशक्त सरकार की, कि तेरा भाग्य उदय हो, तेरी जय हो।                                                                                       जाति पाँति पोषण के साधन कहाँ होते ? धर्मं आदि से पेट नहीं भरा करते।                                                                                     जाति पाँति की बात करेंगे जो, मुँह की खायेंगें। काम करेंगे वही यहाँ, टिक पाएंगे।                                                                                              स्वक्षता और विकास, संकल्प सही तुम्हारा है। शिक्षा और सुशासन चहुँ ओर , तुम्हारा नारा है।        
चाह मेरी प्रभु पाने की तुझको-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

चाह मेरी प्रभु पाने की तुझको-अजय अमिताभ सुमन (सर्वाधिकार सुरक्षित)

मेरी चाहत प्रभु तुझे पाने की, पर तेरी मजबूूूरी आजमाने की। जमाने की नीयत उलझाने को मुझको। वासनाओं की हसरत सताने को मुुझको। ख्वाहिशों का अक्सर चलता मुझपे है जोर, पर प्रभु तझसे ही बंधी जीवन  की डोर। रास्ते हैं अनगिनत,अनगिनत हैं ठौर, मुश्किल हैं ठोकरें मुश्किल है दौड़। भटकन है तड़पन है कितने जमाने की। नियत नही फिर भी तुझको भुलाने की, मंजिल तो तू ही  प्रभु  तुझमें ही मिट जाना, तेरा हो जाना मेरा और मेरा तुझमे खो जाना।                                                                                                     अजय अमिताभ सुमन   सर्वाधिकार सुरक्षित 
एक बालक की पुकार

एक बालक की पुकार

साहित्य, हिन्दी साहित्य
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); नोट - घर पर कोई नहीं है रात का समय है एक बालक अकेले घर पर है और डरा हुवा है , अन्धकार के चलते आकाश के चाँद - सितारों को मना रहा है , उनको फुसिला रहा है अपने मीठी बातों से । आजा तारे -चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । मेरे घर को तू चमकादे , अंधियारा तू दूर भगा दे । अच्छा नहीं लगता अंधियारा , तू हीं लगता है मुझे प्यारा । आजा तारे - चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । तेरे बिना ना पढ़ सकता मैं , तेरे बिना ना रह सकता मैं । कैसे मैं तुझे मनाऊँ , कैसे कर मैं तुझे समझाऊँ । मैं तुमसे बिनती करता हूँ, तुमसे मैं रो कर कहता हूँ । हे आकाश के चाँद -सितारे , सुन ले ईश बालक की बाते , कर दे तू अँधियारा दूर , कर दे तू अँधियारा दूर । Mukesh Chakarwarti  
मच्छर दाता – मलेरिया के बिधाता

मच्छर दाता – मलेरिया के बिधाता

साहित्य, हिन्दी साहित्य
                                                                                                                                                                                       हे रातों के मच्छर दाता,            तू ही मलेरिया का है बिधाता | तू चाहें तो रात बिता दे,       तू चाहें तो रात भर जगा दें | तेरी दया जहाँ जाती है ,       वहां कृपया रहता है तुम्हारा | तेरा घर तो नाला – नाली       नदी, तालाब, और गंदे पानी | तू तो दिन वही बिताता,       रात को मेरे घर में आता | ऊँ ऊँ कर बाते तू करता,       तू तो सबसे है कुछ कहता | तेरी बाते बहुत निराली, ऊ ऊ वाली बाते प्यारी |       तेरी बाते जो ना सुनता उसको तू देता है दण्ड | हे रातों के मच्छर दाता, तू ही मलेरिया का है बिधाता |                                                        - Mukesh Chakarwarti  Follow on twitter
बोल रे दिल्ली…… कुन्दन सिंह

बोल रे दिल्ली…… कुन्दन सिंह

साहित्य, हिन्दी साहित्य
            बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है। बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।   यमुना तेरी सूख गई सब किले तुम्हारे टूट रहे, तेरे दिल में रहकर हम तेरी छाती को कूट रहे। घुटता है दम रोज तेरा, धुआँ धुआँ है साख तेरी, अस्मत लुटती बाजारों में, बंद क्यूँ है आँख तेरी। है प्राचीन विरासत तेरी अब नालों में बहती है। बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।   ह्रदय है तू माँ भारती का, पर्वत सा इतिहास तेरा, रावण तो मरता नहीं कब ख़त्म होगा बनवास तेरा। लोग शहंशाह बन जाते हैं गोदी में तेरी आकर, फिर दासी बन जाती है तू चोट कलेजे पर खाकर। आखिर कैसा मोह है तुझको, जो ये वेदना सहती है। बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।   कृष्ण जो बन कर आये थे अब वही तेरा हर चीर रहे, रक्त पिपास