माँ वक्त वो ना रहा….
माँ वो वक्त वो ना रहा...
ज़ब बचपन माँ तुम्हारे आंचल की छाँव में गुजरता था...
ना कोई चिंता होती तब ना कोई फ़िक्र का पहरा रहता था __
जब रोती कभी आँखें तो माँ चुप कराया करती थी....
अपने प्यार के उस आँचल में मुझे कही छुपाया करती थी....
जब रोज पापा के डर से सरारत कम हो जाया करती थी...
किसी का डांटना चिल्लाना भी तब उतना नहीं अखरता था...
आज की इस दुनिया मे सब उल्टा सा लगता है__
ना वो बचपन का प्यार अब कही भी दिखता है__
तब मतलब, स्वार्थ, पैसो की दुनिया भी नहीं होती थी__
जलन, ईर्ष्या, द्वेष की ज्वाला भी ना होती थी __
आज तो हर पग-पग पर पैरों मैं जंजीरें हैँ__
ठुकराते हैँ सब यहां सब खूब ही मुझे रुलाते हैं__
झूठें किस्सों के किरदार भी मुझको कभी बनाते हैं___
माँ तब मे टूट जाता हु सबसे रूठ जाता हुँ __
तुझे याद करके माँ मैं अक्सर रो भी जाता हुँ __