भारतीय संस्कृति में ब्रह्माण्ड को रचयिता के गर्भ के तौर पर देखा जाता है। इस संदर्भ में यहां महिला को एक ऐसे इंसान के तौर पर देखा जाता है, जो अपने भीतर एक पवित्र जगह रखती है। ऐसे में यहां इस पर बहुत ध्यान दिया गया है कि कैसे उसके साथ व्यवहार किया जाए, कैसे उस पावन स्थान को प्रतिष्ठित किया जाए, कैसे एक आदर्श बच्चे के जन्म के लिए उस स्थान को तैयार किया जाना चाहिए।
हर मासिक चक्र के समय होता था कर्मकांड
जब वह गर्भवती होगी तो उसका मासिक चक्र रुक जाएगा, लेकिन उसके हर चक्र के समय पर यहां एक विस्तृत कर्मकांड बताया गया है। कोई भी महिला आमतौर पर गर्भधारण के पहले से लेकर प्रसव तक ग्यारह कर्मकांडों से होकर गुजरती है। अगर उसके गर्भ का समय सामान्य है तो वह गर्भधारण के पहले से लेकर प्रसव तक ग्यारह मासिक चक्रों से होकर गुजरती है। इन ग्यारह चक्रों के लिए अपने यहां ग्यारह अलग-अलग कर्मकांड हैं, जहां उसके गर्भ को धीरे-धीरे ऊर्जावान व प्रतिष्ठित किया जाता है, क्योंकि अपने यहां लोग नहीं चाहते थे कि बच्चा सिर्फ जेनेटिक प्रभाव लेकर पैदा हो। उनकी सोच थी कि होने वाला बच्चा जीवन के दूसरे पहुलओं से भी प्रभावित हो, जो उसके जीवन की संभावनाओं को बढ़ा सकें।
हालांकि आप आज वे सारी चीजें तो नहीं कर सकते, लेकिन अगर कुछ खास तरह की चीजों का पूरा ध्यान रखा जाए, जैसे किस तरह के माहौल में वह गर्भवती स्त्री रहती है, वह क्या देखती है, क्या सुनती है तो इससे भी होने वाले बच्चे पर बहुत फर्क पड़ेगा।
इसके लिए सही तरह का संगीत, सही तरह के मंत्र, सही तरह का साहित्य जैसी काफी सारी बातें बताई गई हैं। अगर घर में कोई गर्भवती महिला है तो घर की साज-सज्जा को बदला जाता है, उसमें सही आकृति, अच्छे चित्र जैसी चीजों का ध्यान रखा जाता है। क्या आप भारत में अपनाए जाने वाली इस परंपरा के बारे में जानते हैं? खासकर, दक्षिण भारत के पारंपरिक घरों में अभी भी यह परंपरा देखने को मिलती है।
मनोरम तस्वीरें लगाने से मन में सुखद भाव बनेंगे
मान लीजिए कि अगर घर में अगर मां काली की तस्वीर है तो वे उस तस्वीर को कहीं भीतर रख देंगे और जहां गर्भवती औरत रहती है, उस कमरे में कृष्ण की तस्वीर या ऐसी ही कोई मनोहर तस्वीर लगाएंगे। तो लोग घरों में ऐसे बदलाव करते थे। घर में गर्भवती औरत के होने पर कोई भी डरावनी, अप्रिय और वीभत्स तस्वीर या चीज नहीं रखी जाती है। उसे पूरी तरह से खुशहाल और मनोरम माहौल में रहना चाहिए। वह रोज चंदन के लेप से नहाती है। ये सारी चीजें इसलिए की जाती हैं कि उस महिला का शरीर व मन हमेशा एक सुखद भाव से भरा रहे, जिससे वह एक खुशहाल प्राणी को जन्म दे सके। लेकिन आज के जीवन में ये सारी चीजें नहीं हो पा रहीं, क्योंकि आज वे काम करने के लिए बाहर जा रही हैं, वे गाड़ी चला रही हैं, वे हर तरह के काम कर रही हैं। आप इन्हें रोक नहीं सकते, क्योंकि आज जीवनशैली ही ऐसी बन चुकी है। तो बच्चे पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह इस पर निर्भर करता है कि वह गर्भवती औरत किन हालात में रह रही है, जो आधुनिक समाज में बिलकुल भी कंट्रोल नहीं किया जा सकता |
source – http://isha.sadhguru.org/blog/hi/sadhguru/sharir/garbhvati-aurat/