Thursday, July 31Welcome to hindipatrika.in

Tag: ईशा क्रिया

ईशा क्रिया के अनुभव को हमेशा कायम कैसे रखें?

ईशा क्रिया के अनुभव को हमेशा कायम कैसे रखें?

ध्यान, स्वास्थ्य
  प्रश्न: सद्‌गुरु, मैं रोज शांभवी का अभ्यास करता हूं और लगभग रोजाना ईशा क्रिया करता हूं। अब मैं यह अनुभव करने लगा हूं कि ‘मैं शरीर नहीं हूं और मैं मन भी नहीं हूं’। मैं लेकिन मैं हर समय अपने शरीर और मन से दूरी बनाकर कैसे रखूं?   सांस आसानी से अनुभव में नहीं आती सद्‌गुरु: जब आप ईशा क्रिया के दौरान कहते हैं, ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ तो यह कोई फिलॉस्फी या विचारधारा नहीं है। यह कोई स्लोगन भी नहीं है जिसे आप अपने अंदर जोर-जोर से कहते रहें और एक दिन रूपांतरित हो जाएं। यह एक सूक्ष्म चेतावनी है जो आप अपनी सांस में भरते हैं। अपने मन में इस बात को बिठाने के लिए ‘मैं शरीर नहीं हूं, मैं मन नहीं हूं’ का इस्तेमाल मत कीजिए। आप बस अपनी सांस में एक खास तत्व जोड़ते हैं। वरना आप अपनी सांस पर ध्यान नहीं दे पाएंगे। फिलहाल आप हवा की गति से होने वाले संवेदनओं को ही देख पाते