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एक बालक की पुकार

एक बालक की पुकार

साहित्य, हिन्दी साहित्य
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); नोट - घर पर कोई नहीं है रात का समय है एक बालक अकेले घर पर है और डरा हुवा है , अन्धकार के चलते आकाश के चाँद - सितारों को मना रहा है , उनको फुसिला रहा है अपने मीठी बातों से । आजा तारे -चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । मेरे घर को तू चमकादे , अंधियारा तू दूर भगा दे । अच्छा नहीं लगता अंधियारा , तू हीं लगता है मुझे प्यारा । आजा तारे - चाँद सितारे , आजा मेरे घर पर । तेरे बिना ना पढ़ सकता मैं , तेरे बिना ना रह सकता मैं । कैसे मैं तुझे मनाऊँ , कैसे कर मैं तुझे समझाऊँ । मैं तुमसे बिनती करता हूँ, तुमसे मैं रो कर कहता हूँ । हे आकाश के चाँद -सितारे , सुन ले ईश बालक की बाते , कर दे तू अँधियारा दूर , कर दे तू अँधियारा दूर । Mukesh Chakarwarti