भोजपुरी आंदोलन का नया प्रारूप है ‘पुरुआ’
भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता के लिए बहुत पहले से आवाज उठती आ रही है। लगभग 50 सालों से अलग-अलग स्तर पे आन्दोलन चल रहे हैं। सरकार का इस मुद्दे परक्या रुख है ये तो अबतक साफ नहीं है लेकिन इन दिनों एक संगठन ने आन्दोलन का अलग ही रूप इख़्तियार किया है। कुछ ही दिनों पहले शुरू हुए इस संगठन का मानना है कि भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता ना मिलने की एक बहुत बड़ी वजह ये है कि लोगों को इस भाषा की गहराई नहीं मालूम लोग भोजपुरी को बस अश्लील और द्विअर्थी गीतों से ही जानते हैं। लोगों की इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया है युवाओं के संगठन "पुरुआ" ने। "पुरुआ कुछ यूवाओं का संगठन है जिनका संकल्प है भोजपुरी भाषा में अच्छे और स्तरीय गीत-संगीत का निर्माण करना। इसके लिए इन्होने देश-विदेश से भोजपुरी भाषियों को जोड़ा है एवं नए कलाकारों को लेकर ही गीत संगीत का निर्माण कार्य कर रहे हैं।
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