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Tag: सरकारी दफ्तर

सरकारी पालिसी:अजय अमिताभ सुमन

सरकारी पालिसी:अजय अमिताभ सुमन

PC: UNSPLASH रिक्शेवाले से लाला पूछा चलोगे क्या फरीदाबाद? उसने बोला झटाक से उठकर बिल्कुल तैयार हूँ भाई साब. मैं तैयार हूँ भाई साब  कि सामान क्या है तेरे साथ? तोंद उठाकर लाला बोला आया तो मैं खाली हाथ. आया तो मैं खाली हाथ  की साथ मेरे घरवाली है. और देख ले पीछे भैया  वो हथिनी मेरी साली है. वो हथिनी मेरी साली है कि क्या लोगे किराया? देख के तीनों लाला हाथी रिक्शा भी चकराया. रिक्शावाला बोला पहले  आजमा लूँ अपनी ताकत. दुबला पतला चिरकूट मैं तुम तीनों के तीनों आफत. तीनों के तीनों आफत पहले बैठो तो इस रिक्शे पर. जोर लगा के देखूं मैं फिर चल पाता है रिक्शा घर? चल पाता है रिक्शा घर कि जब उसने जोर लगाया. टूनटूनी कमर वजनी रिक्शा  चर चर चर चर चर्राया. रिक्शा चर मर चर्राया कि रोड ओमपुरी गाल. डगमग डगमग रिक्शा डोले हुआ बहुत ही बुरा हाल. हुआ बहुत ही बुरा हाल
सरकारी दफ्तर या  कार्यालय

सरकारी दफ्तर या कार्यालय

मुख्य, साहित्य
सरकारी दफ्तर हो या दफ्तर का कार्यालय, होता है ऐसा मनमाना जैसा घर का हो जाना , लोग आते है बिनती करते है, हाथ- पैर जोड़कर कहते हैं , जी घुश लीजिये काम कीजिये, अपना ये इनाम लीजिये , ओ कहते है वेतन चाँद का पुर्नावासी है , इससे काम नहीं चलता हैं , और दिजिए काम लीजिये, नहीं तो हम घर चलते है, ऐसा लगता है हम नौकर, ओ हम सब का हैं मालिक, जो कहते हैं वही करते हैं, मन मान है उन सबका , मनमाना चलता है उनका, नहीं उन्हें कोई कुछ कहता, उनके उपर का अधिकारी, उनसे बड़ा घुस खोर हैं, वे भी कुछ ऐसा करते हैं, घुस खोरी पेशा उनका, कोई किसीको क्या समझाए, सब इस दलदल में लदफद हैं, ऐसे मिले जुलें है जैसे अब खींचड़ी पकनें को है || - Mukesh Chakarwarti NOte :- ऐसा नहीं की सभी दफ्तर/कार्यालय में होता है, लेकिन होता है ,