मेरी चाहत प्रभु तुझे पाने की,
पर तेरी मजबूूूरी आजमाने की।
जमाने की नीयत उलझाने को मुझको।
वासनाओं की हसरत सताने को मुुझको।
ख्वाहिशों का अक्सर चलता मुझपे है जोर,
पर प्रभु तझसे ही बंधी जीवन की डोर।
रास्ते हैं अनगिनत,अनगिनत हैं ठौर,
मुश्किल हैं ठोकरें मुश्किल है दौड़।
भटकन है तड़पन है कितने जमाने की।
नियत नही फिर भी तुझको भुलाने की,
मंजिल तो तू ही प्रभु तुझमें ही मिट जाना,
तेरा हो जाना मेरा और मेरा तुझमे खो जाना।
अजय अमिताभ सुमन
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