
बोल रे दिल्ली…… कुन्दन सिंह
बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।
बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।
यमुना तेरी सूख गई सब किले तुम्हारे टूट रहे,
तेरे दिल में रहकर हम तेरी छाती को कूट रहे।
घुटता है दम रोज तेरा, धुआँ धुआँ है साख तेरी,
अस्मत लुटती बाजारों में, बंद क्यूँ है आँख तेरी।
है प्राचीन विरासत तेरी अब नालों में बहती है।
बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।
ह्रदय है तू माँ भारती का, पर्वत सा इतिहास तेरा,
रावण तो मरता नहीं कब ख़त्म होगा बनवास तेरा।
लोग शहंशाह बन जाते हैं गोदी में तेरी आकर,
फिर दासी बन जाती है तू चोट कलेजे पर खाकर।
आखिर कैसा मोह है तुझको, जो ये वेदना सहती है।
बोल रे दिल्ली बोल तू क्या क्या कहती है।
कृष्ण जो बन कर आये थे अब वही तेरा हर चीर रहे,
रक्त पिपास