कवि की अभिलाषा:अजय अमिताभ सुमन
PC:Pixabay
ओ मेरी कविते तू कर परिवर्तित अपनी भाषा,
तू फिर से सजा दे ख्वाब नए प्रकटित कर जन मन व्यथा।
ये देख देश का नर्म पड़े ना गर्म रुधिर,
भेदन करने है लक्ष्य भ्रष्ट हो ना तुणीर।
तू भूल सभी वो बात की प्रेयशी की गालों पे,
रचा करती थी गीत देहयष्टि पे बालों पे।
ओ कविते नहीं है वक्त देख सावन भादों,
आते जाते है मेघ इन्हें आने जाने दो।
कविते प्रेममय वाणी का अब वक्त कहाँ है भारत में?
गीता भूले सारे यहाँ भूले कुरान सब भारत में।
परियों की कहे कहानी कहो समय है क्या?
बडे मुश्किल में हैं राम और रावण जीता।
यह राष्ट्र पीड़ित है अनगिनत भुचालों से,
रमण कर रहे भेड़िये दुखी श्रीगालों से।
बातों से कभी भी पेट देश का भरा नहीं,
वादों और वादों से सिर्फ हुआ है भला कभी?
राज मूषको का उल्लू अब शासक है,
शेर कर रहे न्याय पीड़ित मृग शावक है।
भारत माता पीड़ित अपनों के हाथों से,
चीर र